ऐसी वैदिक मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से भगवान लक्ष्मी नारायण जी का भक्तों को भरपूर आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत को रखने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। यही नहीं मृत्यु उपरांत उच्च लोक में श्रेष्ठ स्थान मिलता है। वैष्णव समाज के लोग एकादशी पर्व धूमधाम से मनाते हैं।

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी मनाई जाती है। इसे लोग भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि महाभारतकाल में गदाधारी भीम निर्जला एकादशी का व्रत रखते थे। इसके लिए इसे भीमसेनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत का पुण्य फल सभी एकादशियों के समान होता है। इस साल 6 जून को निर्जला एकादशी का शुभ दिन है। वैदिक पंचांग के मुताबिक ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 6 जून को देर रात 2 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। इसके लिए 6 जून को निर्जला एकादशी मनाई जाएगी।

योगिनी एकादशी का भी विशेष महत्व

निर्जला एकादशी की तरह ही योगिनी एकादशी का भी सनातन संस्कृति में विशेष महत्व है। हर साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त गण लक्ष्मी नारायण जी का व्रत रख उनकी पूजा करते हैं। इस व्रत को करने से साधक पर भगवान विष्णु की कृपा बरसती है।

वैदिक पंचांग के मुताबिक योगिनी एकादशी का शुभ मुहुर्त 21 जून को सुबह 07 बजकर 18 मिनट पर आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि शुरू होगी। वहीं, 22 जून को सुबह 04 बजकर 27 मिनट पर आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त होगी। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए 21 जून को योगिनी एकादशी मनाई जाएगी।

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